केंद्र और राज्य सरकार किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई योजनाओं और कार्यक्रमों पर काम कर रही हैं। कृषि क्षेत्र को सशक्त करने और इसे लाभ का धंधा बनाने के लिए विभिन्न पहलें की जा रही हैं। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना, कृषि ऋण माफी, और फसल बीमा योजनाएँ किसानों के हित में लागू की गई हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य किसानों की आय बढ़ाना और उन्हें बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाना है।
हालांकि, इन सकारात्मक प्रयासों के बीच एक गंभीर समस्या भी उभर रही है। कई सरकारी उपक्रम, जो किसानों के कल्याण के लिए स्थापित किए गए हैं, वे वास्तव में किसानों के साथ छल कर रहे हैं। इन उपक्रमों की नीतियों और कार्यप्रणालियों के कारण किसान अक्सर ठगी का शिकार होते हैं।
किसानों को सही मूल्य और संसाधन उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने जो कदम उठाए हैं, उनमें से कई बार वास्तविकता में किसानों को लाभ नहीं मिल पाता। जैसे, कई बार बीज, खाद और कीटनाशकों की गुणवत्ता खराब होती है या फिर इनकी उपलब्धता सही समय पर नहीं होती। इसके अलावा, सरकारी मंडियों में किसानों को उचित मूल्य नहीं मिलने की समस्याएँ भी आम हैं।
इन समस्याओं का समाधान करने के लिए आवश्यक है कि सरकारें न केवल अपनी नीतियों को सुधारें बल्कि किसानों की समस्याओं को समझें और उनके लिए वास्तविक और प्रभावी समाधान प्रदान करें। किसानों के साथ छल और धोखाधड़ी के मामलों को रोकने के लिए सख्त निगरानी और पारदर्शिता की आवश्यकता है, ताकि कृषि क्षेत्र को वास्तव में लाभ का धंधा बनाया जा सके और किसान आत्मनिर्भर बन सकें।
निष्कर्ष
इस प्रकार, केंद्र और राज्य सरकारें किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठा रही हैं, लेकिन इन योजनाओं को लागू करने में पारदर्शिता और ईमानदारी का होना बहुत आवश्यक है। तभी जाकर किसानों को उनके मेहनत का सही फल मिलेगा और वे अपने व्यवसाय में आत्मनिर्भर बन सकेंगे।ताजा मामला भोपाल के बैरसिया दांगी गांव का है, जहां एक किसान नर्मदा प्रसाद की कृषि भूमि को बैंक ने नीलाम कर अन्य व्यक्ति को बेच दिया है। यह घटना न केवल नर्मदा प्रसाद के लिए बल्कि पूरे गांव के किसानों के लिए चिंता का विषय बन गई है। नर्मदा प्रसाद, जो अपने परिवार की आजीविका के लिए इस भूमि पर निर्भर थे, अब अपने जीवन यापन के लिए संकट में हैं।नर्मदा प्रसाद, एक पीड़ित किसान, अपनी दुखद स्थिति का वर्णन करते हुए कहते हैं कि वह लोन की बाकी राशि जमा करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। इसके बावजूद, बैंक उनकी सुनवाई नहीं कर रहा है, जिससे उनकी निराशा और बढ़ती जा रही है। उनकी स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि उन्होंने आत्मदाह करने का विचार तक कर लिया है, यह दर्शाते हुए कि उन्हें महसूस हो रहा है कि उनके पास अब कोई विकल्प नहीं बचा है।
किसानों की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए, नर्मदा प्रसाद का कहना है कि बैंक की बेरुखी ने उन्हें मानसिक और आर्थिक रूप से परेशान कर दिया है। उन्होंने बार-बार बैंक अधिकारियों से मिलकर अपनी समस्याओं का समाधान निकालने की कोशिश की, लेकिन हर बार उन्हें निराशा ही मिली। उनका कहना है कि जब तक वे अपनी कर्ज की पूरी राशि जमा करने के लिए तत्पर हैं, तब तक बैंक का यह व्यवहार उनके लिए समझ से बाहर है।
यह केवल नर्मदा प्रसाद की कहानी नहीं है, बल्कि यह उन कई किसानों की कहानी है जो आर्थिक संकट के बीच फंसे हुए हैं। उनकी दास्तान यह दिखाती है कि किस तरह से सरकारी प्रणाली और बैंकिंग व्यवस्था की कमी से किसानों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। नर्मदा का आत्मदाह का विचार इस बात का संकेत है कि उन्हें अब किसी प्रकार का आश्रय नहीं मिल रहा है और उनकी जीने की उम्मीद खत्म होती जा रही है।
उनकी इस गंभीर स्थिति को सुनकर, समाज और सरकार को एक साथ आकर विचार करने की आवश्यकता है ताकि किसानों की समस्याओं का उचित समाधान निकाला जा सके और ऐसे दुखद घटनाओं से बचा जा सके।
किसान नर्मदा प्रसाद ने इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते हुए मंगलवार को एक आवेदन के माध्यम से कलेक्टर भोपाल से न्याय की गुहार लगाई है। उन्होंने बताया कि उनकी भूमि को बिना उनकी अनुमति के और बिना उचित प्रक्रिया के नीलाम किया गया, जो कि कानून का उल्लंघन है। कलेक्टर ने उनकी याचिका को गंभीरता से लेते हुए जांच के बाद उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया है।
इस मामले ने ग्रामीणों के बीच चिंता और असंतोष का माहौल पैदा कर दिया है। कई किसानों ने नर्मदा प्रसाद का समर्थन करते हुए कहा कि यह घटना किसानों के अधिकारों और उनकी मेहनत के प्रति एक बड़ा धोखा है। ग्रामीणों का मानना है कि बैंक और अन्य वित्तीय संस्थाएं किसानों की समस्याओं को नजरअंदाज कर रही हैं और उनके साथ अन्याय कर रही हैं।