CG NEWS: छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग में जनजातीय समाज की बड़ी आबादी निवास करती है, जो अपनी अद्भुत परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत के लिए मशहूर है। इस क्षेत्र के लोग अपने त्योहारों को उत्साह और धूमधाम से मनाते हैं, जिनमें दीपावली का त्योहार विशेष महत्व रखता है। यहां के लोग दीपावली का त्योहार दिवाली के दस दिन बाद मनाते हैं, जो उनके अद्वितीय सांस्कृतिक परंपराओं को दर्शाता है।
कार्तिक अमावस्या के दिन, समाज विशेष के लोग माता लक्ष्मी और भगवान नारायण की पूजा करते हैं। यह दिन समृद्धि और सुख-समृद्धि की कामना के लिए समर्पित होता है। इस अवसर पर, लोग अपने घरों को दीपों और रंग-बिरंगी झालरों से सजाते हैं, और सामूहिक रूप से पूजा-अर्चना करते हैं। यह त्यौहार न केवल धार्मिक बल्कि सामुदायिक एकता और भाईचारे का प्रतीक भी है, जिसमें सभी लोग एक साथ मिलकर खुशियां मनाते हैं।सरगुजा के जनजातीय लोग मानते हैं कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान जागते हैं। यह विश्वास उनके धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसी कारण, दीपावली पर माता लक्ष्मी की पूजा अकेले नहीं की जाती, बल्कि इस अवसर पर भगवान की भी पूजा की जाती है। यहाँ यह परंपरा है कि दोनों की पूजा एक साथ की जाती है, जिससे भक्तों का मानना है कि माता लक्ष्मी और भगवान दोनों की कृपा एक साथ प्राप्त होती है। इस दिन, लोग अपने घरों को दीपों से सजाते हैं और भक्ति भाव से पूजा अर्चना करते हैं, जिससे समृद्धि और खुशहाली की कामना की जाती है।दीपावली के ग्यारहवें दिन, सरगुजा के लोग गाय को लक्ष्मी का स्वरूप मानते हैं और उसका विशेष पूजन करते हैं। इस दिन, गाय को धन और समृद्धि की देवी के रूप में पूजा जाता है, क्योंकि यह भारतीय संस्कृति में गाय को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है।
गुरु-शिष्य परंपरा का पालन भी इस दिन विशेष रूप से होता है। झाड़-फूंक करने वाले बैगा गुनिया अपने शिष्यों को विशेष मंत्र देते हैं, जो उनकी परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। शिष्य अपने गुरु का आदर करते हैं, उन्हें भोजन कराते हैं और नए कपड़े भेंट करते हैं। यह परंपरा न केवल गुरु-शिष्य के रिश्ते को मजबूत बनाती है, बल्कि समाज में एकता और सहयोग की भावना को भी बढ़ावा देती है। इस दिन का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि यह सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है।दिवाली, जिसे दीपावली के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो हर साल पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। इस विशेष अवसर पर, सरगुजा संभाग में लोक कला सोहराई का आयोजन बड़े उत्साह और धूमधाम के साथ होता है।
इस दौरान, स्थानीय लोग मिलकर सुंदर सोहराई चित्र बनाते हैं, जो घरों और गलियों को सजाते हैं। ये चित्र मुख्यतः मिट्टी से बने होते हैं और इनमें विभिन्न प्रकार के रंग-बिरंगे रंगों का प्रयोग किया जाता है। सोहराई कला का यह आयोजन न केवल स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखता है, बल्कि यह समाज के लोगों को एकजुट करने का भी कार्य करता है।
दिवाली के इस उत्सव में लोक गीतों की धुन पर पूरा सरगुजा संभाग गूंज उठता है। लोग अपने पारंपरिक गीत गाते हैं, जो प्रेम, भाईचारे और समृद्धि का संदेश देते हैं। इसके साथ ही, लोक नृत्य का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें लोग विभिन्न पारंपरिक नृत्य विधाओं का प्रदर्शन करते हैं। इस प्रकार, दिवाली पर मनाया जाने वाला लोक कला सोहराई का उत्सव न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर का भी सजीव उदाहरण प्रस्तुत करता है।
इस प्रकार, दस दिन बाद होने वाली दिवाली पर लोक कला सोहराई का यह आयोजन सबको एक साथ लाने और खुशी का माहौल बनाने का कार्य करता है।सरगुजा के जनजातीय ग्रामीण अंचल में दीपावली के दस दिन बाद देवउठनी एकादशी को सोहराई पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व यहां के जनजातीय लोग “देवउठनी सोहराई” के नाम से जानते हैं।