जब कोई इंसान अंतरिक्ष (Space) में जाता है, तो उसकी लंबाई (height) लगभग 2 इंच यानी 5 सेंटीमीटर तक बढ़ जाती है!
इसका कारण है गुरुत्वाकर्षण (Gravity) का ना होना। पृथ्वी पर हमारी रीढ़ की हड्डी (spine) पर गुरुत्वाकर्षण का दबाव रहता है, जिससे वह थोड़ी सी संकुचित रहती है। लेकिन जब कोई अंतरिक्ष यात्री zero-gravity (microgravity) वातावरण में जाता है, तो उसकी रीढ़ की हड्डी फैल जाती है — और इंसान कुछ सेंटीमीटर लंबा हो जाता है।
लेकिन ये बदलाव स्थायी नहीं होता।
जैसे ही वो व्यक्ति पृथ्वी पर वापस आता है, गुरुत्वाकर्षण फिर से काम करने लगता है और उसकी हाइट पहले जैसी हो जाती है।
इसे समझना क्यों जरूरी है?
ये तथ्य दर्शाता है कि हमारा शरीर कितना adaptable (अनुकूलनशील) है। साथ ही यह स्पेस मेडिसिन और स्पेस ट्रैवल की जटिलताओं को समझने में भी मदद करता है। इससे यह सवाल भी उठता है: क्या इंसान लंबे समय तक अंतरिक्ष में रह सकता है?
Bonus Fact:
NASA के जुड़वां अंतरिक्षयात्रियों के मिशन (Twin Study) में पाया गया कि एक साल अंतरिक्ष में बिताने के बाद, शरीर के DNA expression में भी बदलाव हुआ — यानी अंतरिक्ष हमारे शरीर को cellular level पर भी बदल सकता है!