जगदलपुर: बस्तर दशहरा, परंपराओं और श्रद्धा का अद्भुत संगम

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जगदलपुर: बस्तर दशहरा, जो विश्व प्रसिद्ध है, इस बार 75 दिवसीय महोत्सव के तहत अपने ऐतिहासिक रस्मों के लिए चर्चा में रहा। इस महोत्सव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा “काछन गादी” की रस्म थी, जो बस्तर संभाग के मुख्यालय जगदलपुर में स्थित भंगाराम चौक के निकट काछन गुड़ी के पास पूरी की गई।

इस रस्म को निभाने का सम्मान कोंडागांव जिले के आड़काछेपड़ा गांव की 8 साल की छोटी बच्ची, पीहू दास को मिला। पीहू के ऊपर बस्तर की काछन देवी सवार होकर इस महत्वपूर्ण रस्म को पूरा किया गया। काछन देवी ने कांटों के झूले से राजपरिवार के सदस्य को दशहरा मनाने की अनुमति दी, जिससे इस रस्म की महत्वता और भी बढ़ गई।

यह रस्म बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर और पारंपरिक मान्यताओं का प्रतीक है, जो क्षेत्र के लोगों के लिए गर्व का विषय है। काछन देवी की पूजा और पीहू की भागीदारी ने इस धार्मिक आयोजन को और भी विशेष बना दिया, जो बस्तर दशहरा के अनूठे स्वरूप को प्रदर्शित करता है।बस्तर दशहरा: परंपरा और श्रद्धा का अद्भुत मिलन

बस्तर दशहरा के अवसर पर माता के भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी। यह रस्म न केवल धार्मिक भावना को दर्शाती है, बल्कि बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर को भी जीवंत करती है। बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव ने बताया कि “1430 ई. से यह परंपरा निभाई जा रही है। करीब 600 सालों से हमारा परिवार इस रस्म को निभा रहा है।”

उन्होंने आगे कहा, “आज दंतेश्वरी देवी, जगन्नाथ, काछन देवी, रैला देवी के आशीर्वाद से बस्तर दशहरे की शुरुआत की गई है।” इस रस्म के दौरान, भक्तों की अपार संख्या ने इस पर्व के महत्व को और बढ़ा दिया, जिसमें श्रद्धा और समर्पण की एक अद्वितीय भावना देखने को मिली।

बस्तर दशहरा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह क्षेत्र की सांस्कृतिक विविधता और परंपराओं को भी प्रकट करता है। इस समारोह में लोग न केवल देवी-देवताओं की पूजा करते हैं, बल्कि एकजुट होकर अपने समुदाय की समृद्ध संस्कृति का जश्न भी मनाते हैं।देवी काछनदेवी का आशीर्वाद: एक पवित्र परंपरा

काछनदेवी ने आशीर्वाद दिया है और मुझे फूलों की माला पहनाई गई है, जो कि एक विशेष आशीर्वाद के रूप में मानी जाती है। इस परंपरा के अनुसार, देवी की आज्ञा मानी जाती है कि अब रथ चलाया जाए। उनके आशीर्वाद के बाद, कलश स्थापना और अन्य रस्मों की अदायगी की जाएगी, जो सदियों से चली आ रही एक महत्वपूर्ण परंपरा है।

किछनदेवी और रैला देवी को घर की बेटियों के रूप में पूजा जाता है। इतिहास में बस्तर के पुराने राजा की दोनों बेटियों ने आत्मदाह किया था, और उनकी पवित्र आत्मा आज भी इस क्षेत्र में विद्यमान मानी जाती है। मान्यता है कि हर साल, पनका जाति की एक बच्ची के अंदर देवी की आत्मा आती है और वह इशारों में राजपरिवार को आशीर्वाद देती हैं।

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