Mahasamund : छत्तीसगढ़ सरकार को धान खरीदी मामले में पहले से ही विपक्षी पार्टी कांग्रेस का विरोध झेलना पड़ रहा है। अब इसी मुद्दे पर सरकार की धान खरीदी नीति का विरोध करने वाले समिति के सदस्य आज महासमुंद जिला कलेक्टर कार्यालय पहुंचे और उन्होंने त्यागपत्र की पेशकश की है। यह घटनाक्रम सरकार की धान खरीदी योजना को लेकर चल रहे विवाद को और बढ़ा सकता है। विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार की नीतियां किसानों के हित में नहीं हैं, और इससे किसानों को कोई खास लाभ नहीं हो रहा। इस पर सरकार का पक्ष है कि वे किसानों के कल्याण के लिए निरंतर काम कर रहे हैं, लेकिन विरोध के बावजूद यह नीति जारी रखने की बात कही जा रही है।
वो कहावत है ना कि “सिर मुड़ाते ही बोल पड़े,” जो अब छत्तीसगढ़ राज्य सरकार के धान खरीदी नीति को लेकर सच होती दिखाई दे रही है। राज्य सरकार ने 14 नवम्बर से धान खरीदी प्रारंभ करने का निर्णय लिया है, लेकिन इसका विरोध विपक्षी पार्टी द्वारा किया जा रहा है। अब महासमुंद जिले के धान समिति केंद्रों के प्रभारियों ने राज्य सरकार की इस नीति को समिति के अनुकूल नहीं मानते हुए, आज जिले के सभी प्रबंधकों ने कलेक्टर कार्यालय पहुंचकर इस्तीफा दे दिया है। कलेक्टर कार्यालय पहुंचे इन प्रबंधकों ने कलेक्टर को 3 बिंदुओं पर एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें उन्होंने अपनी चिंता और विरोध व्यक्त किया है।
समिति के सदस्यों का कहना है कि धान खरीदी के मामले में पिछली सरकारों द्वारा लागू किया गया 72 घंटे के भीतर धान के उठाव का नियम वर्तमान राज्य सरकार ने समाप्त कर दिया है। समिति का यह आरोप है कि 72 घंटे के भीतर धान का उठाव नहीं होने की वजह से धान अधिक समय तक खुले में पड़ा रहता है, जिससे वह अधिक सुखता है। इसके कारण समितियों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। समिति में पाई जाने वाली धान की कमी का नुकसान भी समितियों को ही उठाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में, समिति के प्रबंधक को आर्थिक रूप से हानि का सामना करना पड़ता है।